शिक्षक दिवस........
आज हम सभी शिक्षक दिवस के रूप मे मना रहे है।
लेकिन मैं सभी से एक प्रश्न करता हूँ कि, आपके जीवन मे शिक्षक या गुरु का क्या अस्थान है? अगर हमारे जीवन मे उनका कोई अस्थान है तो क्या हम उनको कभी याद करते है।
हमारे देश मे गुरु का अस्थान प्राचीन काल से हि सभी से ऊपर रखा गया है।
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः
गुरुर ब्रह्मा : गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं.
गुरुर विष्णु : गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं.
गुरुर देवो महेश्वरा : गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं.
गुरुः साक्षात : सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष
परब्रह्म : सर्वोच्च ब्रह्म
तस्मै : उस एकमात्र को
गुरुवे नमः : उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करता हूँ.
ये आदर्श वाक्या केवल भारत जैसे देश मे हि दिखाई देता है।
हम सभी आज 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप मे मनाते है। लेकिन आप जानते है। कि हम ऐसा क्यों इसी दिन मनाते है।
दुनियाभर में शिक्षक दिवस (Teachers’ Day) को महत्वपूर्ण दिन के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि यह गुरू के सम्मान में मनाया जाने वाला दिन है, जिसे किसी फेसटिवल की तरह ही सेलिब्रेट किया जाता है। हालांकि, इंटरनेशनल टीचर्स दे 05 अक्टूबर को सेलिब्रेट किया जाता है, जिसकी घोषणा साल 1994 को यूनेस्को ने की थी। भारत में 05 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है, आप जानेंगे तो महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को सलाम करेंगे।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति, विद्वान, दार्शनिक और भारत रत्न से सम्मानित डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr Sarvepalli Radhakrishnan) का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी में हुआ था। उन्हीं की याद में इस तारीख को हम टीचर्स डे (Shikshak Divas) के रूप में सेलिब्रेट करते हैं।
शिक्षक दिवस का महत्व
यह दिन सभी शिक्षकों के सम्मान और आभार प्रकट करने का दिन है। देशभर में, स्कूल, कॉलेज, हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूट से लेकर कोचिंग सेंटर्स में डॉ राधाकृष्णन को श्रद्धांजलि देकर इस दिन (Teachers’ Day) को मनाया जाता है। छात्र अपने शिक्षकों को मैसेज, कार्ड और गिफ्ट देकर उनकी सराहना और आभार प्रकट करते हैं।
बदलते समय का हमारे संस्कृति पर प्रभाव।
लेकिन इस भौतिक वादी समय मे हमारे संस्कृति पर पश्चमी सभ्यता का गहरा प्रभाव दिखता है। हम अपने गुरु से तभी तक मिलते जुलते है जबतक हम उनसे शिक्षा ग्रहण करते है।शिक्षा के उपरांत हम पैसे के पीछे इतना मग्न हो जाते है कि हमें इतना भी समय नहीं बचता कि ज़रा हम अपने गुरु को भी याद करले और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें। इस बदलते समय पैसे सभी को चाहिय लेकिन उसके प्रती हम इतना भी व्यस्त ना हो जय कि हम अपने संस्कृति को हि भूल जाय।
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट। अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नदान॥गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥
ज्ञान प्रम सुख, दया भक्ति विश्वास।
गुरु सेवा ते पाइए, सद् गुरु चरण निवास।
करै दूरी अज्ञानता, अंजन ज्ञान सुदये।
बलिहारी वे गुरु की हँस उबारि जु लेय॥
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